प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब के चंडीगढ़ पहुंचे, जहां उन्होंने नए आपराधिक कानूनों के सफल कार्यान्वयन के अवसर पर नागरिकों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा, “एक ऐसे समय में जब देश ‘कृत भारत’ के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है और स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हुए हैं, तब ‘भारतीय न्याय संहिता’ का प्रारंभ होना बहुत बड़ी बात है।”
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा, “पहले अपराधियों से ज्यादा डर आम नागरिकों में रहता था। कई अहम कानून चर्चा से दूर रहे हैं। अनुच्छेद 370 और ट्रिपल तलाक पर व्यापक चर्चा हुई और अब नए संशोधन विधेयकों पर भी विचार हो रहा है। यह ठोस प्रयास हमारे संविधान में निहित आदर्शों को साकार करने की दिशा में है।”
उन्होंने यह भी कहा कि, “हमने हमेशा सुना है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं, लेकिन व्यवहारिक सच्चाई अलग होती है। इस बदलाव के साथ कानून अब हर व्यक्ति के प्रति संवेदनशील और समावेशी बनाया गया है। आज़ादी के सात दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो चुनौतियां आईं, उनका गहन विश्लेषण किया गया। हर कानून को व्यवहारिक और भविष्यवादी दृष्टिकोण के आधार पर परखा गया। इसके लिए मैं सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों और न्यायाधीशों का आभार व्यक्त करता हूं।”
प्रधानमंत्री ने 1947 में देश की आज़ादी के समय की स्थिति को याद करते हुए कहा, “अंग्रेजों की गुलामी के बाद लोगों ने सोचा था कि अंग्रेजों के बनाए कानूनों से मुक्ति मिलेगी। लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी दशकों तक हमारे कानून दंडात्मक सोच पर आधारित रहे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने 1860 में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) लागू किया और बाद में सीआरपीसी का ढांचा लाया गया। इन कानूनों का मकसद भारतवासियों को दंडित करना और उन्हें गुलाम बनाए रखना था।”
उन्होंने कहा, “स्वतंत्रता के बाद भी ये कानून दंडात्मक मानसिकता के साथ हमारे नागरिकों पर थोपे गए। लेकिन आज, इन कानूनों को बदलकर उन्हें आधुनिक और न्यायसंगत बनाने का प्रयास किया गया है।”