राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने महाराष्ट्र के अमरावती में आयोजित महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में रविवार को धर्म का मर्म समझाया। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि धर्म का अधूरा और गलत ज्ञान लोगों को अधर्म की ओर धकेलता है। धर्म सत्य, अहिंसा और समानता की भावना को जगाता है। भागवत ने कहा कि धर्म सृष्टि के आरंभ से अंत तक की संहिता है।
धर्म को सही शिक्षा के जरिए समझने की जरूरत है। मोहन भागवत ने अपने संबोधन में धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों की वजह बताई। उन्होंने कहा कि यह गलतफहमियों और अधूरी जानकारी का परिणाम है। उन्होंने कहा कि संप्रदाय समाज को जोड़ने का कार्य करता है, न कि उसे तोड़ने का। भागवत ने कहा कि बिना सही ज्ञान के धर्म को समझ पाना मुश्किल है और इसे समझाने के लिए बुद्धि और विवेक की जरूरत होती है। भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में दिए अपने बयान का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने महाराष्ट्र के अमरावती में आयोजित महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में धर्म का मर्म समझाया।
मांसाहार और पर्यावरण पर कही ये बात मोहन भागवत ने मांसाहार के प्रभाव पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मांसाहार से पानी की खपत और प्रदूषण बढ़ता है। अगर मांसाहार बंद हो, तो कत्लखाने खुद ही बंद हो जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि चुनावी मुकाबलों में मर्यादा और सत्य का पालन आवश्यक है। आगवत ने समाज के सभी वर्गों को मजबूत बनाने पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अहंकार से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह विकास की राह में रोड़ा बनता है। दिन मंदिर-मस्जिद विवाद उठाना सही नहीं है। कुछ लोग इसे हिंदुओं के नेता बनने का जरिया मानते हैं, लेकिन यह गलत है। भारत को एक ऐसा मॉडल बनाने की जरूरत है जो दुनिया को सद्भावना का संदेश दे सके। RSS प्रमुख ने कहा कि जाति भगवान ने नहीं बनाई, यह पंडितों की देन है। समाज को जाति से ऊपर उठकर सबको एक समान मानना चाहिए। भागवत ने कहा कि समाज में आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक इसकी जरूरत हो।