अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर जहां एक ओर शिल्पकारों की अनोखी शिल्पकला को देखकर पर्यटक आश्चर्यचकित हो रहे है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न राज्यों के नृत्यों के लम्हों को पर्यटक अपने मोबाइल में कैद करते हुए नजर आ रहे है। इन शिल्पकारों ने महोत्सव में पहुंचकर ब्रह्मसरोवर के पावन तट की फिजा को बदलने का काम किया है।
महोत्सव में पहुंचने वाला हर पर्यटक इस महोत्सव के इन यादगार लम्हों को जी रहा है। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति को दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। इन कलाकारों द्वारा अपने अपने राज्यों की लोक संस्कृति को अपने-अपने राज्यों की वेशभूषा में दिखाने का काम किया जा रहा नाटी, राजस्थान के बहरुपिए, पंजाब के बाजीगर, राजस्थान के लहंगा मंगनीयार व दिल्ली के भवई नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी जा रही है। यह कलाकार अंतर्राष्ट्रीय गीता है।
इतना ही नहीं इन कलाकारों के साथ ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर पर्यटक नृत्य करते हुए नजर आ रहे है। विभिन्न राज्यों की कला के संगम के बीच कलाकार अपने-अपने राज्य की कला का बखूबी बखान कर रहा है। कलाकारों का कहना है कि आज के आधुनिक जमाने में भी उन्होंने अपनी कला को जिंदा रखा है, अपनी कला को विदेशों तक पहुंचा रहे है। विदेशों की धरती पर भी उनकी कला ने उनका नाम रोशन किया है। महोत्सव में कलाकारों द्वारा उत्तराखंड के छपेली, पंजाब कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में अपनी प्रस्तुति देते कलाकार। / महोत्सव पर 15 दिसंबर तक लोगों को अपने-अपने प्रदेशों की लोक कला के साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे। इस महोत्सव पर आने के लिए देश का प्रत्येक कलाकार आतुर रहता है।
पर्यटकों को फिर से ब्रह्मसरोवर के तट पर लोक संस्कृति को देखने का अवसर मिल रहा है। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक कला केंद्र की तरफ से विभिन्न राज्यों के कलाकार अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंच चुके हैं। यह कलाकार लगातार अपनी लोक संस्कृति की छठा 1/4 75% + विभिन्न राज्या का कला क सगम क बाच कलाकारों ने दी शानदार नृत्यों की प्रस्तुति हाथों की अनोखी कारीगरी से सजा ब्रह्मसरोवर का पावन तट अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024 में 28 नवंबर से 15 दिसंबर तक लगे सरस और शिल्प मेले में विभिन्न राज्यों से पहुंचे शिल्पकारों की हाथों की अनोखी कारीगरी से ब्रह्मसरोवर का पावन तट सज चुका है। इस महोत्सव के सरस और शिल्प मेले में इन शिल्पकारों की हाथ की कला को देखकर महोत्सव में आने वाला प्रत्येक पर्यटक आश्चर्यचकित हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के मेले में असम से आए शिल्पकार ने बताया कि वे अपने साथ बांस से बनी सुंदर-सुंदर घर की सज्जा सजावट का सामान अपने साथ लेकर आए है। शिल्पकार ने बताया कि वे हर वर्ष इस अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में आते है, केडीबी प्रशासन की तरफ से महोत्सव शिल्पकारों को लुप्त हो चुकी हस्त शिल्पकला को उजागर करने का एक अच्छा मंच देता है। इस महोत्सव में वे अपने साथ बांस से बने घर की सज्जा सजावट का सामान फ्रूट बास्केट, फ्लावर पोर्ट, दीवार सिनरी, कप प्लेट, वॉल हैगिंग, टेबल लैम्प, बांस से बनी पानी की बोतल इत्यादि सामान लेकर आए है। यह सब सामान वे असम में बांस से बनाते है तथा इस सामान को बनाने के लिए कई लोग काम करते है। वे अपनी इस हस्त शिल्पकला से दूसरे लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करते है।
इनकी कीमत 50 रुपए से लेकर 1 हजार रुपए तक है तथा वे अपनी इस कारागिरी को दूसरे कई राज्यों में भी दिखाते है और पर्यटक इनकी गीता महोत्सव का मुख्य आकर्षण बना धोरों की धरती राजस्थान की लोक कला सपेरों का बीन बाजा हरियाणा के थानेसर (कुरुक्षेत्र) में स्थित ब्रह्मसरोवर पर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024 मनाया जा रहा है। ब्रह्म सरोवर दिल्ली से 159 किलोमीटर व क्षत्रिय रेलवे स्टेशन से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर है। गीता महोत्सव की शुरुआत सन 1989 से हुई व सन 2016 से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा रहा है। यह पर्व मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। लेकिन महोत्सव के विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कई दिन पहले से शुरू हो जाता है। बीन-बाजा पार्टी के सरदार (संयोजक) ने बताया कि बीन बजाकर सपेरों के खेल दिखाना सपेरों का मुख्य पेशा था। लेकिन वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 व 2023 के बाद सांपों चलते ये अपने पारंपरिक कला के पेशे से वंचित हो गए व आर्थिक दशा भी ठीक नहीं है। इसलिए अपनी जीविका के लिए शादी-विवाहों व अन्य उत्सवों पर बीन बजाकर अपना पेशा चला रहे है। लेकिन आधुनिक युग की चकाचौंध व डीजे जैसे वाद्य मशीनरी के आगे बीन बजाना भी फीका पड़ गया है।
यह पारम्परिक कला लुप्त होने की कगार पर है इसलिए इसके विकास के लिए सरकार और समाज दोनों का योगदान आवश्यक है। सरकार को इनके रहने, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की तरफ ध्यान देना चाहिए। वहीं समाज अगर आधुनिक डीजे जैसे सिस्टम को त्यागकर शादी-विवाहों में बीन बाजा पार्टी को बुलाए तो इनकी जीविका आसान हो जाएगी। गीता तहत धोरों की धरती व गौरवमय इतिहास की पहचान रखने वाले राजस्थान की लोक कला कालबेलियों का बीन बजा की धुन मुख्य आकर्षण का केंद्र बन रही है। कालबेलियों की लोक कला एवं कालबेलिया नृत्य को 2010 में केन्या के नौरोवी में यूनेस्को द्वारा अमृत सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया। इसी कालबेलिया समाज की गुलाबो सपेरा को उनके कालबेलिया नृत्य के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। बीन बाजा पार्टी के सपेरों की पारंपरिक पोशाक, बीन चिमटा, ढोलक, तुम्बी आदि वाद्य यंत्रों की धुन ने दर्शकों का मन मोह लिया।