विभिन्न संस्कृतियों में रमणीयस्थ स्थापित करने वाले श्री तिरुपति बालाजी धाम में अलग-अलग दिन माता गोदांबा व माता पद्मावती की सवारी शोभा यात्रा निकाली गई। इन शोभा यात्राओं में विभिन्न क्षेत्रों से काफी संख्या में श्रद्धालुजन ने हिस्सा लेकर अपनी आस्था जताई। इस दौरान पूरा तिरुपति धाम जय श्रीमन नारायण, जय तिरुपति बालाजी, जय भगवान वेंकटेश्वर, जय माता गोदांबा एवं जय माता पद्मावती के उद्घोष से गूंजायमान हो गया। शोभा यात्रा के उपरांत सभी भक्तों में स्वादिष्ट पंगत प्रसाद वितरित किया गया। शोभा यात्रा को विधि-विधान से प्रातः पूजा-अर्चना कर ध्वजारोहण करके शुरू व आरंभ की गई। इसी श्रृंखला में बुधवार को तिरुपति: श्री गोदांबा जी की सवारी यात्रा निकाली गई। वहीं गुरुवार को चल समारोह में माता पद्मावती के चल विग्रह को रथ में स्थापित पालकी में शोभायात्रा किया गया। श्रद्धालुओं ने रथ को रस्सों से खींचकर पूरे धाम की परिक्रमा करके अपनी श्रद्धा का परिचय दिया। सिरसा रोड पर टाउन टोल प्लाजा के पास स्थित तिरुपति धाम में भगवान वेंकटेश्वर जी के श्री मंदिर में इस मंदिर के बाएं ओर माता गोदांबा व दाएं तरफ माता पद्मावती विराजमान हैं। इन दोनों मंदिरों हेतु बाहर से लाए गए ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित किए गए हैं। इन मंदिरों की विशेषता यह है कि इन्हें देखने मात्र से ही मानसिक शांति का अनुभव होता है। इन मंदिरों की भव्यता श्रद्धालुओं को आभा से आकर्षित करती है।
माता गोदांबा को माना जाता भू देवी का अवतार:
माता गोदांबा को भू देवी का अवतार माना जाता है। माता गोदांबा का अविर्भाव एक बालिका के रूप में भगवान के परमभक्त श्री विष्णुचित के नंदवन में तुलसी के पौधे की छाया में हुआ। भगवान के प्रति भक्ति और प्रगाढ़ आस्था के चलते माता गोदांबा भगवान विष्णु जी के श्री रंगनाथ स्वरूप से अपने पति-परमेश्वर को खोजने लगी। जब वन में ऐसा ही आगार जब भगवान विष्णु जी की अनुकंपा से गोदांबा श्री रंगनाथ में लीन होकर रंगनायक बन गईं।
पद्मावती को माना जाता लक्ष्मी का स्वरूप:
माता पद्मावती को श्री लक्ष्मी माता का स्वरूप माना जाता है। माता लक्ष्मी ने राजकुमारी पद्मावती को रूप में राजा अकर्षण के यहां जन्म लिया। धर्मग्रंथों के अनुसार आकाशराज ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और उसी समय भगवान विष्णु जी पृथ्वी पर वेंकटेश्वर रूप में प्रकट हुए। इसलिए कहा जाता है कि पद्मावती और वेंकटेश्वर जी का विवाह अत्यंत शुभ व दिव्य था। इस विवाह का साक्षी स्वयं श्रीनिवास एवं ब्रह्मा-विष्णु का विवाह संपन्न हुआ।