ओशो ध्यान उपवन में बच्चों व साधकों के लिए दो शिविर धूमधाम से शुरू किए गए। बच्चों ने मेडिटेशन व सेलिब्रेशन शिविर और साधकों ने दि आर्ट ऑफ ब्लिसफुल लिविंग शिविर में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया। शिविर में बच्चों ने जहां फन गेम्स का लुत्फ उठाते हुए मेडिटेशन सीखा, वहीं साधकों को तनाव, चिंता व अवसाद से बचने के उपाय बताए गए। सिरसा रोड स्थित ओशो ध्यान उपवन में 8 जून तक चलने वाले इन दो शिविरों में विभिन्न क्षेत्रों से बच्चे व साधक हिस्सा ले रहे हैं। हिसार से बाहर से आए बच्चों व साधकों के आवास, नाश्तेव भोजन की समुचित व्यवस्था ओशो ध्यान उपवन में ही की गई है। दोनों शिविरों के आयोजक स्वामी संजय व मां सांची ने बताया कि पंजाब से स्वामी चंद्रशेखर, जम्मू से मां प्रियांशी व जयपुर से स्वामी मनीष व मां निशा साधकों व बच्चों को जीवन के विभिन्न आयामों से परिचय करवा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न संसाधनों की सुलभता के चलते बच्चे मोबाइल फोन या अन्य गैजेट्स में उलझे रहते हैं। इससे उनमें व्याकुलता बढ़ती है और एकाग्रता का अभाव होता जाता है। इसका सीधा प्रभाव उनके स्वास्थ्य व पढ़ाई एवं अन्य गतिविधियों पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में मेडिटेशन व सेलिब्रेशन शिविर काफी कारगर है। उन्होंने बताया कि शिविर में बच्चों ने मेडिटेशन की क्रियाएं समझी और रोप एडवेंचर, आर्ट एंड क्राफ्ट, ब्रेन जिम, गायन व नृत्य में हिस्सा लिया। इसके साथ ही दूसरे शिविर में साधकों को मन को शांत करने वाली और तनाव व अवसाद को दूर करने वाली ध्यान क्रियाओं का अभ्यास करवाया गया।
शिविर के अंतिम दिन बच्चे करेंगे प्रतिभा का प्रदर्शन
चार दिवसीय दोनों शिविर 8 जून तक चलेंगे। शिविर में सीखी गई कलाएं अंतिम दिन बच्चों द्वारा प्रस्तुत की जाएंगी। गुरुग्राम से ज्योति भटेजा अपनी 9 वर्षीय बेटी जिशा व 6 वर्षीय भतीजे जीवांश के साथ इस शिविर में हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे शिविर बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक हैं। इसी भांति रतिया से जसविंद्र अपनी 15 वर्षीय बेटी संजू के साथ इन शिविरों में उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। बेटी संजू ने बताया कि वह अगले वर्ष अपने 12 वर्षीय भाई को भी साथ लेकर आएगी। सिरसा से वंदना मदान भी अपने 9 वर्षीय बेटी सोहा व 9 वर्षीय भतीजी रोहाना के साथ शिविर में पहुंची हैं। सोहा ने बताया कि इस शिविर में काफी कुछ नया सीखने को मिला है। इसी तरह दिग्विजय सिंधु और उनकी 7 वर्षीय पुत्री नूर, भूपेंद्र सिंह और उनकी 10 वर्षीय पुत्री भूमिका भी इन शिविरों का लाभ उठा रहे हैं। इवान, रेहान, माधव, परी, दृष्टिका, अनंत, कैफी, जयवर्धन व निशा सहित काफी संख्या में बच्चे रचनात्मक क्रियाएं सीख रहे हैं और मेडिटेशन करते हुए एकाग्रता का महत्व समझ रहे हैं।