जेएसएलएन के तुलसी ऑडिटोरियम में हरियाणा की 400 साल पुरानी लोकनाट्य परंपरा स्वांग का शानदार मंचन किया गया। ‘प्रिय चरित्र’ स्वांग की प्रस्तुति दर्शकों के लिए लोककला और रसों के अद्भुत संगम का अनुभव लेकर आई। इस स्वांग का निर्देशन एवं डिज़ाइन अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार डॉ. सतीश कश्यप (अध्यक्ष, स्वांग एकेडमी) द्वारा किया गया। डॉ. कश्यप ने अपने निर्देश में पारंपरिक स्वांग शैली में आधुनिक नाट्य-रचना और प्रभावशाली प्रस्तुति का समावेश कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्वांग प्रस्तुति में रमन नारा, प्रतीक सिंह, विहार भारद्वाज, अनिल सैनी, संजीव कश्यप, अपूर्व भारद्वाज, राजेश छापा, प्रीतपाल व नीरज लोहा ने सहयोग दिया। संगीत कमल राणा का रहा व नृत्य निर्देशिका स्वाति शर्मा रहीं।
स्वांग के राजा डॉ. सतीश कश्यप 1990 से स्वांग की कला को हरियाणा में ऐतिहासिक 400 साल पुरानी पंरपरा को जीवित करने में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि स्वांग जीने की कला और दम-दम-दमस करते हुए लौटे हैं।
किंग ऑफ स्वांग डॉ. कश्यप अपनी अदाकारी व स्वांग के प्रति समर्पण के चलते हरियाणवी फिल्मों तक भी पहुंचे हैं। यशपाल शर्मा की फिल्म ‘दादा लख्मी’ में उन्हीं दिनों की भूमिकाओं में खूब जचे हैं। ‘लोकलोक किंग’ में भी विलन के ही रोल में दिखे ‘मेरे यार की शादी’ जैसी चर्चित फिल्म में भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आए। डॉ. कश्यप ने बताया कि अब वक्त है कि स्वांग को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की सख्त जरूरत है।
दर्शकों से मिल रहे प्यार के लिए उन्होंने धन्यवाद जताया।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि और राकेश अग्रवाल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अतिथियों ने मंच से संवादित करते हुए स्वांग जैसी पुरातन लोक विधा को संवर्धित और पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह कार्यक्रम आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट हरियाणा सरकार के तत्वावधान में किया गया।
इस अवसर पर नाट्यगृह रंगमंच के अध्यक्ष आर. बी. आर्य ने डॉ. सतीश कश्यप की हौंसले को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि ‘लोकनाट्य’ हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना हम सबका दायित्व है। दीपिका ने कार्यक्रम का संचालन किया और पूरे मंचन के दौरान दर्शकों को स्वांग हरियाणा की गौरवशाली परंपरा के रूप में नजर आया। कार्यक्रम में हिसार और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में शिक्षक, लेखक,प्रेमी और दर्शक उपस्थित रहे। सभी ने प्रस्तुति की सराहना करते हुए इसे लोकनाट्य का प्रेरणादायक रूप कहा।