गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (गुजविप्रौवि) में सेंटर फॉर काउंसलिंग एंड वेल-बीइंग (CCWB) के सौजन्य से “माइंडफुलनेस और हैप्पीनेस: अंतर्मन की यात्रा” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि माइंडफुलनेस (सजगता) मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के साथ-साथ आंतरिक खुशी और संतोष की अनुभूति को भी बढ़ाती है। यह हमारे मूल्यों को पहचानने, जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को संजोने और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करती है।
विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए माइंडफुलनेस महत्वपूर्ण
प्रो. बिश्नोई ने कहा कि वर्तमान समय में विद्यार्थियों को पढ़ाई, असाइनमेंट, परीक्षा और करियर संबंधी चिंताओं के कारण मानसिक दबाव झेलना पड़ता है। माइंडफुलनेस का अभ्यास इन चुनौतियों का धैर्य और समझदारी से सामना करने में सहायता करता है। एक जागरूक मन किसी भी परिस्थिति में संतुलन बनाए रख सकता है। गुजविप्रौवि केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता पर ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के समग्र विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देता है।
उन्होंने विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और अन्य कोर्सों का लाभ उठाने की सलाह दी, जिससे वे अपने कौशल का विकास कर सकें।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता प्रो. महेंद्र प्रताप शर्मा
इस कार्यशाला में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (NIMHANS), बेंगलुरु के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. महेंद्र प्रताप शर्मा मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि माइंडफुलनेस भारत की प्राचीन परंपरा है, और ऋषियों की “सच्चिदानंद” की अवधारणा ही वास्तव में सजगता है। उन्होंने भगवान बुद्ध के ब्रह्मवाक्य “अपना दीपक स्वयं बनो” का संदर्भ देते हुए बताया कि आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने इसे “आत्म-साक्षात्कार” का नाम दिया है।
प्रो. शर्मा ने माइंडफुलनेस से जुड़ी विभिन्न ध्यान विधियों, विशेष रूप से विपश्यना ध्यान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि माइंडफुलनेस एक प्रयासरहित प्रयास है और इसे अपनाने से व्यक्ति मानसिक शांति, खुशी और आंतरिक संतुलन प्राप्त कर सकता है।
कार्यशाला में माइंडफुलनेस के लाभों पर चर्चा
कार्यशाला की अध्यक्षता CCWB के निदेशक प्रो. संदीप राणा ने की। उन्होंने कहा कि “मन की स्थिति यदि बुद्ध जैसी होगी, तो दुनिया में युद्ध जैसी स्थिति नहीं होगी।” उन्होंने प्रतिभागियों को सजगता का महत्व समझाते हुए कहा कि स्वयं के भीतर झांकना ही सच्चा ध्यान है।
उन्होंने यह भी बताया कि अधिकतर समस्याएं क्रिया से नहीं, बल्कि प्रतिक्रिया से उत्पन्न होती हैं। जो व्यक्ति सजग होते हैं, उनमें कृतज्ञता का भाव अधिक विकसित होता है, जिससे वे जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को भी संजोकर रख पाते हैं।
300 प्रतिभागियों ने लिया भाग
इस कार्यशाला में लगभग 300 विद्यार्थियों और शिक्षकों ने भाग लिया। मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. संजय परमार ने बताया कि विभाग केवल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्वविद्यालय के मानसिक स्वास्थ्य और सजगता बढ़ाने के लिए कार्य कर रहा है।
कार्यशाला की समन्वयक डॉ. तरूणा ने विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। धन्यवाद प्रस्ताव प्रो. राकेश बहमनी ने दिया। मंच संचालन डॉ. गोबिंद यादव और डॉ. गौरव शर्मा के नेतृत्व में गुंजन, सुनीता, स्वीटी और प्रवीन ने किया।
माइंडफुलनेस अपनाएं और जीवन में खुशी बढ़ाएं
कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को यह संदेश दिया गया कि माइंडफुलनेस को अपनी दिनचर्या में शामिल करें और मानसिक शांति, संतुलन और खुशी का अनुभव करें। ध्यान की विभिन्न विधियों का अभ्यास करके विद्यार्थी अपने तनाव को कम कर सकते हैं और अपने जीवन को अधिक सकारात्मक और आनंदमय बना सकते हैं।